Translate

लद्दाख में सेना की मदद करने वाले सेना के ही गुमनाम हीरो

लद्दाख में सेना की मदद करने वाले सेना के ही गुमनाम हीरो

एक पुरानी कहावत है कि सेना अपने पेट के बल पर चलती और लड़ती है। आधुनिक समय में ‘पेट’ का सांकेतिक अर्थ व्यापक हो गया है और यह ऑपरेशनल (परिचालन) प्रयास के लॉजिस्टिक्स (सैन्य संचालन) वाले हिस्से से जुड़ गया है। इसीलिए इसे ऑपरेशनल लॉजिस्टिक्स भी कहते हैं। इसमें लड़ना छोड़कर हर गतिविधि शामिल है।

जैसे सैनिकोंं और उनका राशन, हथियार, ढेर सारी गाड़ियों के लिए ईंधन, लुब्रीकेंट, ऊंचाई वाले इलाकों के लिए कपड़े, जनरल स्टोर, गाड़ियों और टेक्निकल स्टोर जैसी न जाने कितनी ही चीजों का मूवमेंट। फेहरिस्त बहुत लंबी है और कभी पूरी नहीं होती। आम धारणा यह है कि सैनिक बस बंकर पहुंचते हैं और लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।

एक तरह से वे हर समय तैयार रहते हैं लेकिन उन्हें सही स्थिति में बनाए रखना, बीमार या घायल होने पर इलाज करना और उनका मनोबल ऊंचा रखना, यह सब लॉजिस्टिक्स ऑर्गनाइजेशन का काम होता है। ऑपरेशनल लॉजिस्टिक्स स्टाफ योजना बनाता है। इनका क्रियान्वयन आर्मी सर्विस कॉर्प्स, आर्मी ऑर्डिनेंस कॉर्प्स और इलेक्ट्रिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स के कॉर्प्स करते हैं।

अगर लद्दाख की जगह राजस्थान या पंजाब होता तो लॉजिस्टिक्स कई कारणों से आसान होता। जैसे पहला, मैदानी इलाका होने के कारण सड़कों से तेजी से मूवमेंट होता। दूसरा, खाने और स्टोर सप्लाई स्थानीय संसाधनों से उपलब्ध हो जाते, जो बड़ी जनसंख्या के लिए पहले ही मौजूद हैं। तीसरा, सामान्य मौसम के कारण कपड़ों और पोषण की कोई विशेष जरूरतें नहीं होतीं।

चौथा, सैनिकों की सेहत को खतरे के बिना उन्हें सामान्य कैनवास टेंट में रखा जा सकता। लद्दाख के साथ जटिलता ज्यादा है। मैदानी इलाके से पहाड़ी इलाके में टैंक ले जाना मुश्किल प्रक्रिया है क्योंकि वहां ऐसी कम सड़कें हैं, जो इनका वजन झेल सकें। हवाई परिवहन बहुत महंगा है, हालांकि कई टैंक आधुनिक यूएस सी-17 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट से ले जाए गए।

पठानकोट और जम्मू क्षेत्रों से, जहां मैदान और पहाड़ मिलते हैं, मनाली से लेह और जोजिला पास से होते हुए श्रीनगर मार्ग पर सड़कों की सीमित संख्या से सैनिकों और युद्ध सामग्री का परिवहन हुआ। यानी भारी-भरकम सामान के परिवहन के लिए बड़ी संख्या में गाड़ियों की जरूरत होती है।

दोनों मार्ग नवंबर में बर्फबारी के कारण बंद हो जाते हैं और अप्रैल-मई में खुलते हैं। यानी काम का मौसम 6-7 महीने का ही होता है और इस दौरान ही 40 हजार अतिरिक्त सैनिकों की आपूर्ति की जाती थी। रोहतांग पास के तहत अटल टनल शुरू होने से कम समय लगने लगा है।

वास्तव में गलवान टकराव के बाद भंडारण जुलाई 2020 में ही शुरू हुआ, जब यह स्पष्ट हो गया कि अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती लद्दाख में बनी रहेगी। इसका मतलब हुआ कि भंडारण के लिए चार महीने ही उपलब्ध थे। उदाहरण के लिए अगर हम मानें कि एक सैनिक के लिए पारंपरिक राशन (आटा, दाल, चावल, मिल्क पाउडर आदि) की 2.1 किग्रा मात्रा प्रतिदिन लगती है तो 40 हजार सैनिकों के लिए, 180 दिन में 15,120 टन राशन की जरूरत होगी, जो 3780 गाड़ियों की भार क्षमता (4 टन प्रति गाड़ी) के बराबर है।

अगर आप ऐसी ही गणना ईंधन, तेल, जनरेटर, भारी हथियार आदि के लिए करें तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आएंगे। इसमें वायुसेना व बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन की जरूरतों और 3 लाख की आबादी के लिए भंडारण को जोड़ दें तो ट्रैफिक प्रबंधन न होने पर सड़कों पर जाम लग जाए।

असली युद्ध शुरू होता है लद्दाख रेंज में 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पूर्वी लद्दाख में। यह चमत्कार ही है कि सेना वहां रहने के लिए अतिरिक्त ठिकाने बना पाई। यहां कई स्मार्ट कैंप हैं, जिनमें माइनस 30 डिग्री झेलने की क्षमता, रोशनी, पानी, सेनिटेशन की सुविधा है। फ्रंटलाइन पर हीटेड टेंट उपलब्ध हैं।

भारतीय सैनिकों की दृढ़ता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सियाचिन में, जहां ताजी बर्फ का स्तर 30-40 फीट तक पहुंच जाता है और बर्फ में दबी सीमित संरचनाओं में रहना नामुमकिन हो जाता है, वहां हमारे सैनिक खराब हो चुके पैराशूट के नीचे कई दिन-रात बिता देते हैं।

कोई भी युद्ध संगठन मेडिकल सुविधाओं के बिना काम नहीं कर सकता। हाल ही में पूर्वी लद्दाख में सर्जिकल सेंटर में एक सफल सर्जरी की गई, जो वहां मेडिकल सुविधाओं की अच्छी उपलब्धता बताती है। ऐसी ही सुविधाएं पूर्वी सीमा पर भी उपलब्ध हैं।

अगर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC), जम्मू-कश्मीर की सरहद पर स्थित नियंत्रण रेखा (LOC) जितनी ही सक्रिय हो गई, तो यह तैनाती अर्ध-स्थायी हो सकती है। लॉजिस्टिक्स स्टाफ और यूनिट सेना के गुमनाम हीरो हैं। उनके महत्वपूर्ण प्रयासों से हमारे सैनिक हमारी सीमाओं की सुरक्षा के राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा कर पाते हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
लेफ्टि. जनरल एसए हसनैन, कश्मीर में 15वीं कोर के पूर्व कमांडर।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2IU9CMT
via IFTTT